नेस्ले इंडिया ‘बायोडाइजेस्टर प्रोजेक्ट’ के साथ जिम्मेदारी से सोर्सिंग करने और डेयरी फार्म्स से होने वाले उत्सर्जन को कम करने के लिये अपनी अटूट प्रतिबद्धता दिखा रही है। बायोडाइजेस्टर टेक्नोलॉजी पशुओं से मिलने वाली खाद को शुद्ध बायोगैस में बदल देती है और इस प्रकार डेयरी फार्म्स का कार्बन फुटप्रिंट कम हो जाता है। बचे हुए घोल का इस्तेमाल प्राकृतिक उर्वरक के रूप में होता है और इससे कृषि की पुनरुत्पादक पद्धति में योगदान मिलता है। इस पहल के तहत नेस्ले इंडिया पंजाब और हरियाणा के 24 जिलों में लगभग 70 बड़े बायोडाइजेस्टर्स और 3000 से ज्यादा छोटे बायोडाइजेस्टर्स स्थापित करने की प्रक्रिया में है। छोटे डेयरी फार्म्स में पशुओं से मिलने वाली खाद को खुला छोड़ दिया जाता है और इससे जीएचजी का उत्सर्जन होता है। इस खाद को बायोडाइजेस्टर्स में डालने से उसका माइक्रोबियल ब्रेकडाउन होता है और बायोगैस बनती है। छोटे बायोडाइजेस्टर्स जो बायोगैस बनाते हैं, वह एलपीजी और ईंधन की लकड़ी की जगह ले सकती है। इससे किसानों की सेहत को धुएं से होने वाला खतरा कम होगा और उन्हें आर्थिक लाभ भी होगा। इन फायदों के अलावा, बड़े बायोडाइजेस्टर्स 100% नवीकरण योग्य बिजली भी बना सकते हैं और इससे पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव होगा। बायोडाइजेस्टर्स की बची हुई खाद को जैव उर्वरक में बदलकर खेतों और किचन गार्डन्स में इस्तेमाल किया जाता है।
इस पहल पर अपनी बात रखते हुए, नेस्ले इंडिया में कॉर्पोरेट अफेयर्स और सस्टेनेबिलिटी डायेक्टर श्री संजय खजूरिया ने कहा, ‘‘नेस्ले इंडिया का बायोडाइजेस्टर प्रोजेक्ट इसका उदाहरण है कि हमारी कोशिशें किस तरह से स्थायित्व, संसाधनों के सही इस्तेमाल और रिजनरेटिव कृषि को लेकर भारत की रणनीतिक प्राथमिकताओं के अनुसार हैं। बायोडाइजेस्टर्स से बनने वाली बायोगैस जीवाष्म ईंधनों पर किसानों की निर्भरता को कम करती है, जबकि जैव-उर्वरक रासायनिक उर्वरकों पर उनकी निर्भरता कम करते हैं। इससे होने वाली बचत का इस्तेमाल किसान अपने खेतों और भलाई में ज्यादा निवेश के लिये कर सकते हैं।’’
पंजाब के मोगा जिले के जलालाबाद गांव की एक डेयरी फार्मर मनदीप कौर ने कहा, ‘‘हम अपने गांव के उन पहले परिवारों में से एक हैं, जिन्होंने अपने खेत में बायोडाइजेस्टर लगाया है। हमारा मानना है कि अपने खेत की ज्यादातर जरूरतों के लिये हमें इससे आत्मनिर्भर बनने में मदद मिली है और हमारा काफी पैसा तथा मेहनत बची है। हमारे खेत में बनी बायोगैस ने खाना बनाने के ईंधन की जरूरत भी पूरी कर दी है। लकड़ी से उलट, इसका धुआं नहीं होता है, मेरे फेफड़ों को नुकसान और आँखों में खुजली नहीं होती है।’’ नेस्ले इंडिया ऐसे भविष्य में भरोसा करता है, जहाँ डेयरी समुदाय विकास करें और हमारा ग्रह भी स्वस्थ रहे। दूध की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिये कंपनी ने भारत में करीब 80000 डेयरी किसानों को जोड़ा है। नेस्ले इंडिया ने डेयरी किसानों को कार्बन कम करने के लिये पेड़ लगाने का प्रोत्साहन भी दिया है और कम उत्सर्जन वाला चारा प्रदान किया है। इन कोशिशों से किसानों और उनके परिवारों की आजीविका में स्थिरता आई है और डेयरी फार्म्स से निकलने वाली जीएचजी कम करने में योगदान भी मिला है।